शिक्षा
शिक्षा के क्षेत्र में सचेतना प्रगति संघ की अवधारणा:-
नास्ति विद्यासमो बन्धुर्नास्ति विद्यासमः सुहृत्।
नास्ति विद्यासमं वित्तं नास्ति विद्यासमं सुखम् ॥
अर्थात विद्या के समान कोई और भाई – बंधु नहीं है। न ही इस संसार में विद्या जैसा कोई मित्र है। विद्या समान कोई वित्त अर्थात धन नहीं है, और न ही विद्या प्राप्ति के समानांतर संसार में कोई और सुख है।
शिक्षा पर हर व्यक्ति का प्रथम एवं मूल संवैधानिक एवं नैतिक अधिकार है। यह अधिकार उसे राष्ट्र के नागरिकों द्वारा जमा किये कर से बने राजकोष से निशुल्क रूप से प्राप्त होना आवश्यक है। ताकि किसी भी कारण से किसी भी बच्चे की शिक्षा बाध्य न हो सके। सभी बच्चों को अबाध एवं निरंतर रूप से सम्पूर्ण शिक्षा प्राप्ति का अवसर प्राप्त हो। यदि कोई व्यक्ति अशिक्षा, अल्पशिक्षा एवं कुशिक्षा के कारण असमाजिक व अनैतिक कार्य करता है तो उसके लिए व्यक्ति नहीं बल्कि समाज दोषी है इसलिए सबको समान एवं अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था देने के लिए समाज उत्तरदायी है।
लेकिन वर्तमान स्थितियों में शिक्षा व्यवस्था में असमानता के कारण शिक्षा हर वर्ग तक नहीं पहुंच पाती है, जबकि शिक्षा पर हर व्यक्ति का प्रथम एवं मूल अधिकार है। जब समाज शिक्षित होगा तभी हम एक श्रेष्ठ समाज की कल्पना कर सकते हैं। शिक्षा व्यक्ति को हर तरह से सर्वगुण संपन्न बनाती है। शिक्षा हमारे विचारों में प्रबुद्धता लाती है।
सचेतना प्रगति संघ शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य के लिए संकल्पित है।
हमारा उद्देश्य है कि हम भारतीय अद्वैतदर्शन एवं सनातन सिद्धांतों पर आधारित शिक्षण व्यवस्था की स्थापना कर सकें। ताकि कोई भी बच्चा किसी भी कारण से शिक्षा से वंचित न रह पाए। क्योंकि जब समाज शिक्षित होगा तभी वह सही और गलत की पहचान कर पाएगा।
शिक्षा ही सबसे श्रेष्ठ कुंजी है जो हमें हर प्रकार की गुलामी से मुक्ति प्रदान करता है। शिक्षा हमारे अंदर मानवीय गुणों का विकास करती है इसलिए शिक्षा का हर व्यक्ति के लिए अनिवार्य होना अत्यंत आवश्यक है। मानवीय गुणों के विकास के साथ ही समाज में जो भी बुराइयां हम देखते हैं वह हमेशा के लिए समाप्त हो जाएंगी।
अब तक हमारी शिक्षा में अद्वैतदर्शन रूपी सनातन सिद्धांतो का समावेश नहीं किया गया। यही हर समस्या का प्रमुख कारण है। अद्वैतदर्शन हमारे अंदर मन बुद्धि चित और अहंकार का परिष्कार करती है और यही एक सत्यात्मक समाज के निर्माण के लिए आवश्यक है।
यह किसी व्यक्ति का दोष नहीं वरन सम्पूर्ण समाज का दोष है जो शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करवाने में असफल रही है। शिक्षा का हर वर्ग तक पहुंचना अनिवार्य है और इसके लिए सचेतना प्रगति संघ संकल्पित है।
मानव जीवन क्रमशः तन, मन, प्राण एवं आत्मा चार आयामी विकास यात्रा है। जन्म से 6 वर्ष की आयु तक शारीरिक विकास, 7 से 12 वर्ष की आयु में मानसिक विकास, 13 से 18 वर्ष की आयु में भावनात्मक विकास एवं 19 से 25 वर्ष की आयु में चेतनात्मक विकास होता है। इसलिए 25 वर्षीय विद्यार्थी जीवन को ब्रह्मचर्यआश्रम कहा गया है जिसमें ब्रह्मा जी के भाँति मनुष्य के चारों आयामों का विकास होता है। भारतीय वैदिक सनातन व्यवस्था में उपरोक्त सिद्धियों को साधने के लिए बच्चों को 25वर्ष की आयु तक विद्यार्थीदीक्षा प्रशस्त है। सचेतना प्रगति संघ द्वारा सनातन सिद्धांतो के प्रचार के लिए निम्न महत्वपूर्ण कदम उठाये जा रहें हैं।
1. साहित्यिक सचेतना पटल के साहित्यकारों द्वारा प्रतिदिन साहित्य लेखन के माध्यम से अद्वैतदर्शन की जानकारी प्रदान की जा रही है।
2. स्वास्तिक मासिक पत्रिका प्रकाशन द्वारा सनातन सिद्धांतो की जानकारी सनातनी पाठकों को प्रदान की जा रही है।
3. प्रतिरविवार ऑनलाइन वेबिनार द्वारा अद्वैतदर्शन एवं सनातन की जानकारी हेतु प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
4. सनातन सिद्धांतो एवं अद्वैतदर्शन की शिक्षा विद्यालय द्वारा प्रदान करने का प्रयास।
विद्या ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वाद्धनमाप्नोति धनाद्धर्मं ततः सुखम्।।
अर्थात विद्या मनुष्य में विभिन्न गुणों को विकसित करती है। इन गुणों के कारण ही व्यक्ति जीवन में धन, यश, कीर्ति एवं सुख प्राप्त करता है।
सचेतना प्रगति संघ के इस पवित्र अभियान में आप सबका हार्दिक अभिनंदन है।