हमारी यात्रा
सचेतना एक सफर…!!
न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः।।
अर्थात इस धरती पर ऐसा कोई नहीं जो हर पल कोई न कोई कर्म न कर रहा हो। प्रकृति तीनों गुणों सत-रज-तम के आधार पर प्राणी को अपना कर्म करने के लिए विवश करती है।
भगवदगीता के इस श्लोक को ध्यान में रखते हुए सचेतना प्रगति संघ निरंतर अपने कर्म पथ पर अग्रसर है। वास्तव में इस धरती पर ईश्वर ने हमें किसी कार्य विशेष हेतु यह जीवन प्रदान किया है लेकिन अज्ञानता वश हम इस जीवन का सदुपयोग नहीं कर पाते। क्योंकि तीनों गुणों के आधार पर यह प्रकृति हमें कार्य करने के लिए विवश करती है। सत्, रज और तम यही तीन गुण हमें अपने कार्य के लिए मार्ग प्रशस्त करते हैं।
सचेतना के साथ निरंतर समाज के हित के लिए अपना हर पल अर्पित करते हुए हम आप सबके साथ आगे बढ़ रहे हैं। माँ शारदा की कृपा एवं आशीर्वाद से 1 मई 2023 से सचेतना का यह सुंदर सफर शुरू हुआ। इस सफर में आप सब का सहयोग निरंतर प्राप्त होता रहा और इस यात्रा में आप सब सहगामी बनकर नित्य ही सचेतना को उसके उद्देश्यों की तरफ ले जाने में अपना अप्रतिम सहयोग प्रदान करते रहे।
सचेतना ने अपनी इस यात्रा में साहित्यिक सचेतना के रूप में 3 जून 2023 को एक नया आयाम स्थापित किया। भारतीय अद्वैतदर्शन एवं सनातन सिद्धांतों की जानकारी के लिए प्रतिष्ठित साहित्यिक सचेतना निरंतर संकल्पित है। यहाँ पर जुड़ा प्रत्येक साहित्यकार सनातन सिद्धांतों पर नित नवीन सृजन कर अपना योगदान प्रदान कर रहा है। आप सभी पाठकों, विवेचकों और साहित्यकारों का साहित्यिक सचेतना हृदय से आभार व्यक्त करता है।
साहित्यिक सचेतना ने एक कदम आगे बढ़ते हुए 30 जुलाई 2023 को ‘स्वास्तिक’ मासिक पत्रिका के रूप में एक नया आयाम फिर से स्थापित करने का गौरव प्राप्त किया। स्वास्तिक मासिक पत्रिका अपने आप में एक अनूठी पत्रिका है। जिसमें आप सभी साहित्यकारों के द्वारा भारतीय अद्वैतदर्शन और सनातन सिद्धांतों पर सृजन किया जा रहा है। यह पत्रिका साहित्यिक पटल पर अपना अद्भुत स्थान अवश्य बनाएगी, यह पूर्ण विश्वास है।
सचेतना के इस सफर पर सोहनलाल द्विवेदी जी की यह पंक्तियां प्रेरणा का कार्य करती हैं:-
डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।
साहित्यिक सचेतना द्वारा 2 अक्टूबर को गाँधी जी एवं शास्त्री जी के जयंती अवसर पर वीडियो प्रेषण का कार्यक्रम पटल पर संचालित किया। जिसमें आप सभी रचनाकारों ने बढ़-कर कर भाग लिया।
सचेतना ने एक कदम आगे बढ़ते हुए रविवार 8 अक्टूबर को ‘सचेतना अतुल्य आत्मयोग’ की घोषणा की। यदि शरीर स्वस्थ रहेगा तभी समाज के लिए हम महत्वपूर्ण योगदान कर पाएंगे। क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन निवास करता है और जब शरीर स्वस्थ होगा तो मन और बुद्धि में नित नवीन विचार उत्पन्न होंगे जो कि समाज के लिए फलदाई सिद्ध होंगे।
‘सचेतना अतुल्य आत्मयोग’ की राष्ट्रीय प्रभारी एवं योगगुरु आदरणीया निशा ‘अतुल्य’ जी को घोषित किया गया। सोमवार 9 अक्टूबर से निशा जी के सानिध्य में प्रतिदिन सुबह 5:45 से 7:00 बजे तक आत्मयोग की कक्षा निःशुल्क ऑनलाइन संचालित की जाती है। जिसमें आप सभी अपना सहयोग प्रदान कर रहे हैं।
सचेतना का यह सफर निरंतर अपने मंजिल की ओर अग्रसर है। सचेतना ने अपने जो उद्देश्य निर्धारित किए हैं उनको अवश्य प्राप्त करके रहेगा क्योंकि आप जैसे विशिष्ट साहित्यकारों, विवेचकों और पाठकों का साथ निरंतर प्राप्त होता आ रहा है। यही कामना और अपेक्षा है कि आप निरंतर इस यात्रा में ऐसे ही सहगामी बने रहेंगे और अपना अमूल्य सहयोग सचेतना को प्रदान करते रहेंगे। आप सब की सहभागिता को सचेतना हृदय से कोटि-कोटि अभिनंदन करता है एवं आप सभी का आभार व्यक्त करता है।
इन्हीं मंगल शुभकामनाओं के साथ अग्रिम सफर के लिए तैयार…!