Sachetna

उद्देश्य

सचेतना प्रगति संघ का आधार भारतीय अद्वैतर्शन एवं सनातन सिद्धांतों पर आधारित है।  “सत्ये सर्वं प्रतिष्ठितम्” अर्थात सत्य सब जगह प्रतिष्ठित है। संयोग भाव ही सत्य है। द्वंद ही असत्य है। जीवन सत्य है। मृत्यु मिथ्या है। सिद्धांत सत्य है। मानवीय मान्यताएं असत्य हैं। जगत में कोई दूसरा नहीं। सब एक ही परमात्मा के अंश हैं और एक अणु का विस्तार हैं, यही सत्य है। अद्वैत भाव ही सत्य है। द्वैत भाव असत्य है। मैं और तू का संघर्ष ही असत्य है। परस्पर मेल ही सत्य है। अंत्यन्तिम रूप से सिद्ध हर सैद्धांतिक तथ्य ही सत्य है। सत्य सर्वदा विद्यमान है। भारतीय सनातन धर्म भी यही कहता है सत्य को जानो,सत्य को मानो और सत्य को ही जीने का प्रयास करो। सत्य ही ईश्वर है, परमात्मा है। सत्य को छोड़कर कोई दुसरा ईश्वर या परमात्मा नहीं है।

इस जगत में सतस्वरुप परमात्मा ही एक व्यक्ति के रूप में व्यक्त हुआ है। एक से अधिक व्यक्तियों के मेल से ही परिवार का निर्माण हुआ। एक से अधिक परिवारों के योग से ही समाज की उत्पति हुई। एक से अधिक समाजों के संयोग से ही सम्पूर्ण समष्टि का निर्माण हुआ है। इसीलिए इस सांसारिक जगत में व्यक्ति, परिवार, समाज एवं समष्टि चार ही व्यवहारिक केंद्र बनते हैं। सृष्टि को व्यवस्थागत रूप से संचालन के सिद्धांत को ही सनातन धर्म कहते हैं। धर्म की सभ्यता ही व्यवहार तथा आचरण ही संस्कृति कहलाती है। इसलिए व्यक्ति, परिवार, समाज एवं राष्ट्र का सर्वांगीण उत्थान ही सचेतना प्रगति संघ के उद्देश्य का आधार है।

भारतीय चिरपुरातन एवं नितनूतन वैदिक अद्वैतदर्शन पर आधारित सैधांतिक सनातनव्यवस्था ही मानव जीवन की शुद्ध सतयुगीन व्यवस्था है। इन्ही उद्देश्यों के लिए सचेतना प्रगति संघ संकल्पित है।

संगठन द्वारा उद्देशित व्यक्तिगत, पारिवारिक , सामाजिक, राष्ट्रीय एवं वैश्विक सचेतना के उत्थान हेतू निम्न प्रमुख उद्देश्य समाहित किए गए हैं:-

1- व्यक्तिगत सचेतना के विकास हेतू शिक्षा-प्रशिक्षा का कार्य के लिए प्रयास करना है।
2- पारिवारिक सचेतना के प्रगति हेतू स्वरोजगार एवं महिला सशक्तिकरण प्रयास के लिए अभियान चलाना।
3-सामाजिक सचेतना के उत्थान हेतू व्यवहारिक सेवाओं के लिए भारतीय सभ्यता, संस्कृति, साहित्य, कला का विरासत के रूप में संयोजन का कार्य करना।
4- राष्ट्रीय सचेतना के उदार हेतू स्वास्थ्य, असमर्थो हेतू आश्रय, वृक्षारोपण व पर्यावरण सम्बंधित कार्य का प्रयास करना।
5. वैश्विक सचेतना के विस्तार हेतू आध्यात्मिक, नैतिक राजनीति एवं संवैधानिकधर्म के अभियान के लिए प्रयास करना।

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