महिला सशक्तिकरण
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:।
अर्थात, जिस कुल में नारियों कि पूजा, अर्थात सत्कार होता हैं, उस कुल में दिव्यगुण, दिव्य भोग और उत्तम संतान होते हैं और जिस कुल में स्त्रियों कि पूजा नहीं होती, वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल है।
हमारे सनातन धर्म में नारियों को सदैव सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त था। लेकिन सनातन धर्म के प्रभावहीन होने के साथ उनकी स्थिति भी दयनीय होती चली गई।
नारियां समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जिनके बिना हम इस सृष्टि की कल्पना ही भी नहीं कर सकते। पुरुष सदैव अधूरा है बिना नारी के। लेकिन हमारे समाज में नारियों सदैव तिरिष्कृत होती रहीं।
सदियों से अन्यायशील कुव्यवस्था के कारण समाज ने महिलाओं के ऊपर सतीप्रथा, विधवाप्रथा, घूंघटप्रथा, बुर्काप्रथा, दहेजप्रथा, फेमिनिज्मप्रथा आदि अनेकों कुप्रथाओं को थोपकर महिलाओं के निजिस्वतंत्रता का हनन कर आर्थिकन्याय से वंचित रखा। वास्तव में नारियों को इन कुप्रथाओं की आवश्यकता नहीं बल्कि आर्थिकन्याय चाहिए। आज भी अन्यायशील व्यवस्था के चलते हमारे समाज की नारियां सुरक्षित नहीं हैं।
सदैव नारियों की शिक्षा पर प्रतिबंध लगा रहा। अब कुछ समय से नारियों को शिक्षा का अधिकार तो प्राप्त हो गया है लेकिन अभी भी वे आर्थिक समानता से वंचित हैं। यदि आर्थिक समानता मिलती भी है तो उसकी जीवन की कुछ शर्तों के आधार पर। वास्तव में हमारे समाज में आज भी नारियां अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत हैं।
सचेतना प्रगति संघ नारी सशक्तिकरण जागृति हेतु संकल्पबद्ध है। सभी महिलाओं के परिवार को समुचित रूप से हर परिवार आजीविका से आर्थिक समानता प्रदान करने हेतु प्रयासरत रहेगी। ताकि वह आत्मनिर्भर होकर स्वयं को प्रतिष्ठित कर सकें। और आर्थिक आवश्यकताओं के लिए महिलाओं को दूसरों पर निर्भर नहीं रहना पड़े। तलाक होने पर पति-पत्नी को एक परिवार माना जाय और हर परिवार को आजीविका का संसाधन राज्य द्वारा उपलब्ध हो।
पूरा प्रयास रहेगा कि सचेतना प्रगति संघ नारियों के विकास हेतु जिस उद्देश्य को लेकर आगे बढ़ रही है उस उद्देश्य में सफलता प्राप्त करे। इस अभियान में आप सबका भी सहयोग अभिनंदन यह है। नारी सशक्तिकरण सिर्फ परिवार ही नहीं अपितु समस्त समष्टि में अभूतपूर्व परिवर्तन लाने में सक्षम है।