Narendra Rawat
इक ॐकार ऊर्जा तरंगित,
असीम व्योम में विस्तार।
सुखी रहे मनु,यदि बोध हो,
दूजे में वही ऊर्जा संचार।।
एक परम तत्व रचा जगत,
जिसका कण-पिंड संसार।
निर्भय रहे सदा, यदि जानो,
दूसरे में भी तुम हो सखार।।
एकाकी आत्मा हुई व्यापक,
सत् रूप ब्रह्माडं बृहदाकार।
सर्वाभिमान दे परम सम्मान,
यदि मिटे स्व का अहंकार।।
एक सर्व हुआ, सर्व ही एक,
अद्वैत बोध भव सागर तार।
सत् अद्वैत है,अद्वैत ही सत्व,
यही सनातन सिद्धांत सार।।
बीज वृक्ष बना,वृक्ष ही बीज,
एक पेड़ ही हुआ वन अपार।
पिता पुत्र हुआ, पुत्र ही पिता,
एक ही मनु हुआ अरबों पार।।
भिन्न गहनों की महता भिन्न,
गलके जाना कनक एकीकार।
गऊ से बाछी, बाछी बनी धेनु,
एक ही गौ हुई गोकुल दुधार।।
मिटे द्वैत का दुर्गुण दरिद्रता,
मिटे दुःख दासता अंधकार।
रहे गुणी समृद्ध सुखी स्वस्थ,
यदि हो सचेतना अद्वैतसाकार।।
नरेंद्र रावत ‘नरेन’
साहित्यिक सचेतना
देवभूमि उत्तराखंड। गुरुग्राम।